सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

यूपी में उपचुनाव का दंगल,बसपा के निशाने पर 2022


उत्तर प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों पर होने वाले उपचुनाव में बीएसपी कुछ सीटें झटक कर अपने को मुख्य लड़ाई में साबित करने की फिराक में है। पार्टी उपचुनाव में जोर शोर से भाग ले रही है। बीएसपी ने इस चुनाव में भी सोशल इंजीनियरिंग का ही फार्मूला चुना है।इसके लिए बीएसपी ने अपने बड़े नेताओं की फौज को प्रत्याशी चयन के लिए लगाया था। हर एक सीट पर बहुत सोच-विचार कर ही उम्मीदवार उतारा गया है।


बीएसपी के एक नेता ने बताया कि, उपचुनाव में पार्टी के बड़े नेताओं के कंधे पर चुनाव जिताने की जिम्मेदारी है। बीएसपी के पास इस चुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है।पुराने इतिहास को देखें तो जहां पर उपचुनाव हो रहे हैं वो सीटें ज्यादातर बीएसपी के पास ही रही हैं। चाहे घाटमपुर हो या बंगमऊ, बुलंदशहर -- यह सब सीटें बीएसपी के खाते में एक-दो बार रह चुकी हैं। यहां पर उसे गणित सेट करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। इस बार पार्टी ने सारे उम्मीदवार जिताऊ ही उतारे हैं।


प्रदेश में जिस प्रकार से माहौल है उससे लोग बीएसपी के शासन को याद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि चुनाव के लिए शीर्ष नेतृत्व के निर्देशन में हर एक सीट पर रणनीति तैयार की गई है। राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा, प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली के अलावा सांसद विधायक भी पूरा फोकस उपचुनाव पर ही कर रहे हैं।चुनाव वाले क्षेत्र में विभिन्न समाज के लोगों ने डेरा डालकर रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है।


राजनीतिक पंडित बताते है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी तीसरे स्थान पहुंचकर 19 सीटें ही जीत पायी थी। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा था। उसकी भरपाई पार्टी इस उपचुनाव से करना चाहती है। यह बीएसपी के लिए बड़ा अवसर होगा। इससे आगे आने वाले चुनाव पर असर पड़ सकता है।राजनीति के जानकार मानते है की बीएसपी 2012 से लगातार सत्ता से दूर है। बीजेपी सभी जातियों पर सेंधमारी का प्रयास कर रही है उसके चलते बीएसपी के लिए चिंता का विषय जरूर है कि उसका वफादार वोटर उसके पास टिका रहे। इसके लिए पार्टी ने जमीनी स्तर पर तमाम कार्ययोजनाएं बनायी हैं।


2022 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। विपक्ष की जगह कई सालों से खाली पड़ी है। विपक्ष में एक जगह बनाना और बीजेपी को चुनौती देना बहुत महत्वपूर्ण है। इस चुनाव के जरिए यह परखा जा रहा है कि बीएसपी अपनी ओर कितनी जातियों के वोटर को आकर्षित कर सकती है। सोशल इंजीनियरिंग में बीएसपी 2007 में सफल हो चुकी है। बीएसपी के दलित वोट उसकी ओर कितने बचे हैं, सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से वह अन्य जातियों को अपनी ओर कितना खींच पाती है इसकी भी परीक्षा इस उपचुनाव में होगी।


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