निषाद समाज को रिझाने की होड़ तेज, राजनितिक दलों ने झोंकी ताकत
यूपी विधानसभा चुनाव अभी दूर है, फिर भी निषाद मतदाताओं को रिझाने में राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक रखी है। इस मामले में बीजेपी सबसे आगे है। भाजपा ने पहले निषाद पार्टी से गठबंधन किया। अब जय प्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजकर मतदाताओं को निषाद हितैषी होने का संदेश दिया है।
सपा की इर्द-गिर्द घुमती राजनीति
सपा की राजनीति भी निषाद समाज के इर्द-गिर्द घूमती है। ज्यादातर चुनाव में सपा ने निषाद समाज को प्रतिनिधित्व दिया। उपचुनाव में सपा को जीत भी मिली थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बाजी पलट गई। कांग्रेस व बसपा भी निषाद वोटरों को रिझाने में जुटी हैं। सब निषाद समाज को प्रतिनिधित्व देने की बात कर रहे हैं।
नौ विधानसभा में करीब 5 लाख निषाद मतदाता
गोरखपुर के नौ विधानसभा क्षेत्रों में करीब पांच लाख निषाद मतदाता हैं। सबसे ज्यादा मतदाता गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में हैं। पिपराइच, कैंपियरगंज, सहजनवां और चौरीचौरा विधानसभा क्षेत्र में भी निषाद फैक्टर महत्वपूर्ण माना जाता है। बांसगांव, चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्रों में भी निषाद मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। शहर विधानसभा क्षेत्र में भी निषाद मतदाताओं की तादाद ज्यादा है।
निषाद आर्मी का गठन
विधानसभा चुनाव से पहले निषाद आर्मी का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष रविंद्र निषाद हैं। निषाद आर्मी सामाजिक संगठन है। इसके अध्यक्ष का कहना है कि संगठन का उद्देश्य निषाद समाज का उत्थान है। शिक्षा और जीवन का स्तर बढ़े, इस दिशा में प्रयास शुरू किए गए हैं।
बीजेपी ने मारा मास्टर स्ट्रोक
निषाद समाज की सक्रियता सोशल मीडिया पर बढ़ी है। ट्विटर अकाउंट के जरिए समाज के लोग अपनी बात मजबूती से रख रहे हैं। अलग-अलग पार्टियों से जुड़े नेता भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। निषाद समाज के फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप के तमाम ग्रुप चल रहे हैं। भाजपा ने जय प्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजकर मास्टर स्ट्रोक मारा है।
चौरी चौरा विधानसभा से चुनाव जीते थे जयपकाश
जय प्रकाश बसपा के टिकट पर चौरीचौरा विधानसभा क्षेत्र से एक बार चुनाव जीते थे। बसपा सरकार में मंत्री बने थे। लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थामा था। भाजपा ने जयप्रकाश को क्षेत्रीय उपाध्यक्ष बना दिया।
मतदाताओं का बिखराव रोकने की कोशिश
संगठन ने राज्यसभा उपचुनाव में जयप्रकाश निषाद को टिकट देकर चौंका दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने निषाद मतदाताओं का बिखराव रोकने की कोशिश की है।
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