बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

बंगाल में कब थमेगा हत्या का सिलसिला?

 



 


हाइलाइट


 



  • बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास पुराना

  • 2018 पंचायत चुनाव से अब तक 100 नेताओं की हत्या

  • देश में 54 राजनीतिक हत्याओं में से 12 बंगाल में हुई


 


एनसीआरबी ने 2018 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पूरे साल के दौरान देश में होने वाली 54 राजनीतिक हत्याओं में से 12 बंगाल में हुईं। लेकिन, उसी साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को जो एडवायजरी भेजी थी, उसमें कहा गया कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में 96 हत्याएं हुई हैं और लगातार होने वाली हिंसा गंभीर चिंता का विषय है। उसके बाद एनसीआरबी ने सफाई दी थी कि उसे पश्चिम बंगाल समेत कुछ राज्यों से आंकड़ों पर स्पष्टीकरण नहीं मिला है। इसलिए उसके आंकड़ों को फाइनल नहीं माना जाना चाहिए।


 


बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं


उस रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा 50 हत्याएं 2009 में हुईं। उस साल अगस्त में माकपा ने एक पर्चा जारी कर दावा किया था कि दो मार्च से 21 जुलाई के बीच तृणमूल कांग्रेस ने 62 काडर की हत्या कर दी है। दरअसल, वह दौर तृणमूल कांग्रेस के मजबूती से उभरने का था। नंदीग्राम और सिंगुर में जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के जरिए ममता बनर्जी ने देश-विदेश में सुर्खियां बटोरी थीं और राज्य में उनके कार्यकर्ता वर्चस्व की होड़ में जुटे थे। 


 


1988-89 के दौरान राजनीतिक हिंसा में 86 कार्यकर्ताओं की मौत


1980 और 1990 के दशक में जब बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में तृणमूल कांग्रेस औऱ भाजपा को कोई वजूद नहीं था, अक्सर वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच हिंसा होती रहती थी। 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु की ओर विधानसभा में पेश आंकड़ों में कहा गया था कि 1988-89 के दौरान राजनीतिक हिंसा में 86 कार्यकर्ताओं की मौत हुई। उनमें से 34 माकपा के थे और 19 कांग्रेस के। बाकियों में वाम मोर्चा के घटक दलों के कार्यकर्ता शामिल थे।


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