सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई आघात नही करेंगे । अंतरिम रोक जैसा कदम गले दबाने जैसा होगा ।
सुप्रीम कोर्ट ने तब्लीगी जमात के मीडिया कवरेज को लेकर दायर याचिका पर कोई अंतरिम निर्णय देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि वह प्रेस का गला नहीं घोटेगा। दो सप्ताह बाद कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई की जाएगी।
जमातियों की खबरों पर रोक लगवाने याचिका दाखिल की थी
दरअसल, कोरोना वायरस महामारी फैलने को हालिया निजामुद्दीन मरकज की घटना से जोड़कर कथित रूप से सांप्रदायिक नफरत और धर्मान्धता फैलाने से मीडिया के एक वर्ग को रोकने के लिए मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका कोर्ट ने कोई भी अंतरिम आदेश देने से सोमवार को इंकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम एम शांतनगौडर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मुस्लिम संगठन की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की और उससे कहा कि इस मामले में भारतीय प्रेस परिषद को भी एक पक्षकार बनाए।पीठ ने कहा कि वह इस समय याचिका पर कोई अंतरिम आदेश नहीं देगा और उसने यह मामला दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
याचिकाकर्ता ने इस याचिका में आरोप लगाया है कि मीडिया का एक वर्ग दिल्ली में पिछले महीने आयोजित तब्लीगी जमात के कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफरत फैला रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने अपनी याचिका में फर्जी खबरों को रोकने और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्देश केंद्र को देने का अनुरोध किया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि तब्लीगी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल सारे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराने के लिए किया जा रहा है। पश्चिमी निजामुद्दीन में पिछले महीने तब्लीगी जमात के मुख्यालय में हुए धार्मिक कार्यक्रम में कम से कम नौ हजार लोगों ने शिरकत की थी और यह कार्यक्रम ही भारत में कोविड-19 महामारी के संक्रमण फैलने का एक मुख्य स्रोत बन गया क्योंकि इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश व्यक्ति अपने धार्मिक कार्यों के सिलसिले में देश के विभिन्न हिस्सों में गए जहां वे अन्य लोगों के संपर्क में आए।
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