समाज पर सांस्कृतिक निशान छोड़ जाती हैं महामारियां , पहले भी कई महामारियों से बचने के लिए लोगो ने लिया था आस्था का सहारा ।
महामारियां जब भी आती है तो मानव जीवन में बड़ा उथल पुथल होता है , मानव समाज अपने को बचाने के लिए अनेक तरह के सामाजिक ,चिकित्सकीय व सांस्कृतिक प्रयास करते हैं , या यूं कहें कि महामारियां जब भी आती हैं तो अपने साथ अपनी प्रतिक्रिया भी लेकर आती हैं यह प्रतिउत्तर कुछ तो वैश्विक होते हैं कुछ प्रशासकीय और कुछ चिकित्सकीय है , तो कुछ सांस्कृतिक होते हैं । और अनेको महामारी आने के बाद अनेक तरह के सांस्कृतिक प्रतिक्रियाएँ है । हमें भारतीय समाज में देखने को मिल रही है । आज फेसबुक लाइव हो रहे हैं तरह-तरह के वीडियो संदेश लोगो की प्रतिक्रिया के लोकगीतों से वीडियो कविताएं सोशल साइट एवं सांस्कृतिक व्यक्तियों के लिए कर रहे हैं ।दूसरी तरफ से बचने के लिए हनुमान चालीसा एवं कई प्रकार के भजन सोशल साइट पर डाल रहे हैं ।आश्चर्यजनक बात तो तब हुई कि जब वैष्णो देवी जाने के रास्ते में एक कार्डबोर्ड लगा था और उसपर अंकित था कि झाड़ फूक से सभी बीमारियां मिंटो में दूर हो जयेगी । भारत का इतिहास देखें तो काफी रोचक जानकारियां मिलती है कि किस प्रकार मान्यताओं में जनता और विकसित कर उनके सहारे अपने भीतर आत्मविश्वास और स्वस्थ रहने के विवरण से जुड़े अनेक देवी-देवताओं के सांस्कृतिक उपचार एवं दवा के साथ दुआओं के लिए भी जगह बना लेते हैं। पूरी दुनिया में भारत में भारतीय समाज में विशेषकर उत्तर भारत में बंगाल में शीतला देवी की मान्यता और भारत में कई जगह शीतला माता के मंदिर आपको मिल जाएंगे । चेचक जैसे बीमारी में भयंकर जलन होती है अर्थात शीतला देवी की पूजा को इसका इलाज माना गया था । चेचक को भारत में एक स्थानीय नाम भी दे दिया गया था "छोटी माता "अथवा "बड़ी माता" चेचक के लिए भारत में कई जगह शरीर पर माता निकलना कहां गया चेचक के घातक रूप के सीट बढ़ने के बावजूद ग्रामीण इलाकों में आज भी इनकी लोकप्रियता देखी सुनी जा सकती है । वहीं दक्षिण भारतीय समाजों में स्मॉल पॉक्स के प्रतिकार में रेशमा देवी की पूजा की जाती है उनके लिए भी मंदिर लोकगीत कर्मकांड विकसित किए गए हैं। उन्होंने दहेज ताप रहने व शीतलता प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है । विज्ञान की लोकप्रियता बढ़ी है और उस पर हमारी निर्भरता विज्ञान शक्तिमान हो गया है , तो समाज भी प्रतिक्रिया में विभिन्न हो गया है । सांस्कृतिक भी कम हो गए हैं अंधविश्वास का पक्ष भी गौर तलब रहेगा ।वैसे सांस्कृतिक रूप से विश्वास की बहाली में भी मदद करते हैं वायरस के आगे विज्ञान विषयों को विज्ञान से ही आशा है अब देखना यह होगा कि कोरोना जैसी महामारी के चलते हमारा भगवान पर विश्वास और विज्ञान कितना काम आता है।
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