कोरोना काल में कैसे बनाए रखें अपनी रोमांटिक लाइफ़
अभी तक हम सभी अपनी-अपनी ज़िंदगी में इतने वयस्त थे कि हमारे पास किसी के लिए समय ही नहीं था.
घर में रहने वाले बूढ़े मां-बाप शिकायत ही करते रह जाते थे कि बच्चे उन्हें समय नहीं देते. कोरोना के इस संकट काल में आप उनकी ये शिकायत दूर कर सकते हैं.
लेकिन, घर में हर समय सभी सदस्यों की मौजूदगी हम सभी का प्राइवेट स्पेस ख़त्म कर रही है. इसका सीधा असर लोगों की रोमांटिक लाइफ़ पर पड़ रहा है. बहुत से लोग मौज-मस्ती और प्यार के कुछ पल साथ बिताने के लिए बाहर जाया करते थे. पार्टी करते थे. ऐसे लोगों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. अब संकट के इस काल में रिश्तों की रूमानियत कैसे बरक़रार रखी जाए?
अगर आप अपने पार्टनर से दूर आइसोलेशन में हैं, तो ज़ाहिर है उनकी कमी बेइंतहा खल रही होगी.
'स्किन हंगर'
भले ही तकनीक की मदद से आप स्काइप, या वीडियो कॉल से ढेरों बातें कर लें. एक दूसरे से दिल की बात कह लें. फिर भी एक दूसरे का हाथ थाम कर बात करने का जो लुत्फ़ है वो नहीं मिल पाता. दिल और दिमाग़ को सुकून देने वाली एक दूसरे के वजूद की ख़ुशबू कहीं गुम रहती है.
रिसर्चर इसे 'स्किन हंगर' कहते हैं. यानी एक दूसरे के वजूद की गर्मी महसूस करने की ललक.
आइसोलेशन के इस दौर में तकनीक की मदद से इस 'हंगर' को दूर किया जा सकता है. इंटरनेट की दुनिया में ऐसी कई डिवाइस मौजूद हैं जो इस कमी को पूरा कर सकती हैं.
अगर आप अपने किसी अज़ीज़ से दूर हैं तो उसकी भेजी गई चीज़ उस कमी को पूरा कर सकती है. जैसा कि ख़तों-किताबों के दौर में होता था.
लोग बड़े प्यार से अपने जज़्बात शब्दों में पिरो कर एक काग़ज़ पर उतार देते थे. ख़त पढ़ने वाले उन शब्दों में ख़त भेजने वाले की मौजूदगी महसूस कर लिया करते थे. काग़ज़ के उस डुकड़े को सीने से लगा लेते थे. क्योंकि काग़ज़ का यही टुकड़ा तो उनके अपनों के हाथों में था. हो सकता है लिखने वाले ने चूम कर लिफ़ाफ़ा बंद किया हो. वो एहसास ख़त पढ़कर हो ही जाता है.
जानकार कहते हैं कि अकेले रहना कोई बुरी चीज़ नहीं है. रिश्तों की तंदुरुस्ती और उसमें मिठास बनाए रखने के लिए कभी-कभी एक दूसरे से दूर रहना ज़रुरी है.
संकट के इस दौर में सब कुछ बहुत उलझा हुआ है. एक ही जगह रहते हुए काम और रिश्ते निभाना मुश्किल होता है. पता ही नहीं चलता कब ऑफ़िस की ज़िम्मेदारी पूरी हुई और कब रिश्ते निभाने का काम शुरु हुआ.
ऐसे में मौजूदा दौर में रिश्तों के लिए समय मिल भी पा रहा है या नहीं. ये भी कहना मुश्किल है.
एक-दूसरे की कमी का एहसास
जानकारों के मुताबिक़ एक दूसरे से दूर रहकर एक दूसरे की कमी महसूस करना इस बात की दलील है कि आपका रिश्ता कितना मज़बूत है. कुछ समय अलग रहने के बाद जब आप फिर से मिलते हैं तो अलग ही ताज़गी का एहसास होता है. नए जोश और उत्साह के साथ एक दूसरे से मिलते हैं. एक दूसरे की छोटी-छोटी ग़लतियां या कमियां नज़र अंदाज़ कर देते हैं.
वहीं हमेशा एक साथ रहने पर अक्सर हम एक दूसरे से चिड़चिड़ाने लगते हैं. हमें लगने लगता है कि हमारा पर्सनल स्पेस ख़त्म हो रहा है. जो लोग कभी एक दूसरे से दूर नहीं होते उन्हें ये एहसास भी नहीं होता कि वो एक दूसरे के लिए कितने अहम हैं.
एक दूसरे से अलग रहना ही चुनौतीपूर्ण नहीं है बल्कि अकेले रहने के बाद फिर से मिलना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है. इसकी बेहतरीन मिसाल उन लोगों की ज़िंदगी में देखने को मिलती है जो रिटायर होने के बाद सारा समय परिवार के साथ घर में रहते हैं.
जब तक हम काम करते हैं उस वक़्त तक पूरी आज़ादी और मर्ज़ी से ज़िंदगी गुज़ारते हैं.
ऑफ़िस में बिताए समय में किसी की दख़लअंदाज़ी नहीं होती. लेकिन रिटायर होने के बाद जब हर वक़्त घर में ही रहते हैं तो ना सिर्फ़ समय बिताना मुश्किल होता है बल्कि परिवार के साथ सौहार्दपूण संबंध बनाना भी मुश्किल हो जाता है.
क्वारंटीन का असर
हां, अगर थोड़ी समझदारी से काम लिया जाए तो ये मुश्किल भी हल हो सकती है.
क्वारंटीन का समय किसी के लिए भी आसान नहीं हो सकता. हमारी मानसिक स्थिति पर इसका क्या असर पड़ता है इस पर रिसर्च की जा रही है.
रिसर्च में पाया गया है कि क्वारंटीन के समय बोरियत, झुंझलाहट और ग़ुस्सा बढ़ जाता है. और ये असर काफ़ी लंबे समय तक हम पर हावी रहता है.
रोमेंटिक रिलेशनशिप वालों पर इसका और भी गहरा असर पड़ता है. उनका एक दूसरे से दूर रहना तो और भी मुश्किल है.
जिन लोगों का पारिवारिक जीवन पहले से ही ख़राब है उनके लिए भी ये समय भरपूर तनाव पैदा करने वाला है.
घर में होने वाली गाली-गलौज बच्चों पर बुरा असर डालती है. यहां तक कि अगर पीड़ित किसी को फ़ोन करके अपने दिल की बात कहना चाहे तो वो भी मुश्किल है.
ऐसे बहुत से लोग हैं जो घरों में रह रहे हैं. उनके पास रोज़गार नहीं है. रोज़ी-रोटी की चिंता उन्हें चिड़चिड़ा बना रही है.
ख़ास तौर से अमेरिका में तो हालात और भी ख़राब हैं. अगर दोनों ही पार्टनर की नौकरी चली जाए, और दोनों को एक ही घर में एक साथ हर समय रहना पड़े तो घरेलू हिंसा की संभावना सौ फ़ीसद बढ़ जाती है.
जानकारों का कहना है कि लॉकडाउन के दिनों में बहुत से देशों में घरेलू हिंसा के मामले काफ़ी बढ़ गए हैं.
ब्रिटेन में ऐसे मामलों की संख्या में पांच गुना इज़ाफ़ा हुआ है तो फ्रांस में तीन गुना. कुछ ऐसी ही रिपोर्ट अमेरिका और चीन से भी सामने आ रही है. वहीं कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि तलाक़ के मामलों में सलाह या मदद की गुज़ारिशों में कमी दर्ज की गई है.
फ़्रांस, इटली और स्पेन जैसे देशों में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए अलग से क़दम उठा रही हैं. उन्हें होटल में कमरे किराय पर दिए जा रहे हैं जहां वो सुकून से रह सकें.
ब्रिटेन में भी ऐसी महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान मदद के लिए बाहर आने को कह दिया गया है.
लॉकडाउन और आइसोलेशन के बाद सामान्य जीवन शुरु करना भी हम सभी के लिए आसान नहीं होगा. इसीलिए लॉकडाउन जैसी पाबंदियां हटने के बाद हम कैसे अपना जीवन आगे बढ़ाएंगे उसके लिए हम अभी से ख़ुद को तैयार कर लें.
जहां तक हो सके झगड़ों को अपने जीवन से दूर ही रखें. कोशिश यही करें कि एक दूसरे के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय हंसी-खुशी बिताएं.
आइसोलेशन हमें सिखा रहा है कि ना तो हमेशा एक दूसरे के नज़दीक रहना अच्छा है, ना ही हमेशा दूर रहना - दोनों के फ़ायदे और नुक़सान हैं.
लेकिन रिश्ते मज़बूत रखने के लिए उनमें थोड़ी दूरी बनी रहे तो बेहतर है.
अभी मुश्किल वक़्त है. उम्मीद है कि ये जल्द ही गुज़र जाएगा. फिर एक नए दिन की तरह हम सभी के रिश्तों और ज़िंदगी की एक नई शुरुआत होगी.
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