बुधवार, 29 अप्रैल 2020

कर्जमाफी के नाम पर देश को गुमराह कर रही सामंतवादी पार्टी, विपक्ष के प्रपोगंडा का हुआ पर्दाफाश, पढ़े खास रिपोर्ट


      किसी कांग्रेस पोषित एक्टिविस्ट ने एक आरटीआई फाइल करी थी, उसके मुताबिक सरकार ने 68000 करोड़ रुपया कॉरपोरेट्स का माफ़ कर दिया (ध्यान रहे "माफ़" शब्द का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ प्रोपोगंडा के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि सही शब्द "राइट ऑफ" होता है)।


      इन एक्टिविस्ट महोदय का कहना है कि संसद में फरवरी 2020 में अनुराग ठाकुर से जब एनपीए पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब नहीं दिया इसका, जिसके कारण ये आरटीआई फाइल की थी और इसमें पता चला कि सितम्बर 2019 तक 68000 करोड़ रुपया कॉरपोरेट्स का माफ़ (राइट ऑफ) कर दिया गया है जिसमें मेहुल चौकसी आदि कई डिफॉल्टर्स शामिल है।


ये पूरी तरह से प्रोपोगंडा है जिसे बड़ी चालाकी से आरटीआई की आड़ में प्लांट किया गया है


    वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी 2019-20 के बजट सत्र में 5 जुलाई 2019 को एनपीए के विषय में जानकारी दे चुकी है। "Non-performing asset (NPAs) have been down by Rs 1 lakh crore in the last one year and there is recovery of Rs 4 lakh crore over the last four years in NPAs"


    अब आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि कांग्रेस ने अपने 10 वर्षीय कुशासन में कॉरपोरेट्स का 36.5 लाख करोड़ कर्जा "राइट ऑफ" (प्रोपोगंडा शब्द "माफ़") किया।


   आप ये भी जानकर हैरान हो जाएंगे कि कांग्रेस के मात्र 6 सालों में 2008-2014 तक लगभग 36 लाख करोड़ रुपया बैंकों द्वारा कॉरपोरेट्स को दिए गए जबकि 1947-2008 तक बैंकों ने मात्र 18 लाख करोड़ रुपए का ऋण बांटा था। इसका जिक्र स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने किया है।


       आप ये भी जानकर हैरान हो जाएंगे कि कांग्रेस ने जब मोदी जी को सत्ता सौंपी तब बैंकिंग सेक्टर लैंडमाइन पर बैठा था, पूरी तरह बर्बाद हो चुका था।


      जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो सरकार ने बैलेंस शीट को क्लियर करने के लिए 2015 में आरबीआई से एसेट क्वालिटी रिव्यू (AQR) करने को कहा।


       आप ये भी जानकर हैरान हो जाएंगे कि जब कांग्रेस ने मोदी सरकार को सत्ता सौंपी थी तो कुल एनपीए 2 या 2.5 लाख करोड़ बताया था इसका जिक्र स्वयं प्रधानमंत्री भी कर चुके है।


       जब पारदर्शी जांच हुई तो परिणाम में जो आंकड़े एनपीए के रूप में सामने आए वो चौंकाने वाले थे। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार एनपीए:


31 मार्च 2015 : 2,67,065 करोड़ से बढ़कर
31 मार्च 2018 : 8,45,465 करोड़ हो गया


      इसका कारण भी पीएम मोदी बता चुके है, बहुत से बैंक अधिकारियों की मिली भगत के कारण बहुत से मामले दबाए गए थे, ईमानदारी से जांच हुई तो वास्तविक कुल एनपीए निकल कर बाहर आया।


      सरकार की मान्यता, संकल्प, पुनर्पूंजीकरण और सुधारों की 4R की रणनीति के परिणामस्वरूप एनपीए 1,35,366 करोड़ घटकर 31 मार्च 2019 को 7,10,109 करोड़ रुपए हो गया (2 जुलाई 2019 को आरबीआई द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार)। आरबीआई के अनुसार, शुद्ध एनपीए वित्त वर्ष 2017-18 में 6% से घटकर वित्त वर्ष 2018-19 में 3.7% हो गया।


      कर्ज माफी के प्रोपोगंडा पर बोलते हुए खुद प्रधानमंत्री मोदी कई बार कह चुके है कि हमारी सरकार ने किसी भी कॉरपोरेट्स का एक रुपया भी कर्जा माफ़ नहीं किया है।


तो फिर जो घड़ी घड़ी खबरें चलती है कि फलाने उद्योगपति का इतना कर्जा माफ़ कर दिया, वो क्या है?


      "माफी" सही शब्द नहीं है, ये शब्द प्रोपोगंडा शब्द है, जनता को भ्रमित करने के लिए दरबारी मीडिया द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता है। सही शब्द है "राइट ऑफ" इसका मतलब ऋण माफ करना नहीं होता। यह सामान्य प्रक्रिया है जो आरबीआई द्वारा की जाती है, बैड लोन को "राइट ऑफ" करके बैलेंस शीट क्लियर की जाती है। राइट ऑफ मतलब "बट्टे खाते में डालना"।


         अब इसमें मजे की बात यह है कि कांग्रेस के कुशासन में 36.5 लाख करोड़ का कर्ज राइट ऑफ किया गया लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इस ऋण (एनपीए) को वसूल करने के लिए 2016 तक कोई ठोस कानून ही नहीं था। बेचारे बैंक्स कॉरपोरेट्स के चक्कर लगा लगा के थक जाते थे पर मजाल है कि माल्या, मेहुल, नीरव जैसे कॉरपोरेट्स बैंकों को पैसा चुकाएं? 


      फिर मोदी सरकार ने 2016 में बनाया "इन्सोलवेंसी एंड बैंकरप्सी कानून" शुरुआत में इसे स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसमें समय के साथ अमेंडमेंट होते गए और यह एनपीए वसूल करने का ठोस कानून बन गया।


      मोदी सरकार की सख्त कार्यवाही और आईबीसी कानून से डरकर माल्या, नीरव, मेहुल जैसे लोग देश छोड़कर भागने लगे.. क्योंकि अब लोन रिकंस्ट्रक्शन के नाम पर और लोन देना बंद कर दिया गया था, कांग्रेस के समय खूब मलाई काट रहे थे ये लोग अब ऋण चुकाने की बारी आई तो भागने लगे..


       फिर मोदी सरकार ने 2018 में बनाया "भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून" इसमें कड़े प्रावधान किए गए। माल्या, नीरव, मेहुल जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों की बेनामी संपत्तियां यहां तक की विदेशी संपत्तियां भी जप्त करके नीलाम करके वसूली करने का प्रावधान किया। इसके अलावा सरकार ने सभी बैंकों से 50 करोड़ से अधिक ऋण लेने वाले कॉरपोरेट्स के पासपोर्ट की कॉपी जमा करवाने को कहा! ताकि भविष्य में कोई डिफॉल्टर देश छोड़ कर भाग न सके।


तथ्य:


     1 फ़रवरी 2019 विजय माल्या के ट्वीट के अनुसार वो 9000 करोड़ लेकर भागा था लेकिन एजेंसियों द्वारा उसकी 13000 करोड़ अधिक संपत्ति जब्त की जा चुकी थी।


    नीरव मोदी ने 6400 करोड़ का बैंक फ्राड किया, अप्रैल 2019 तक एजेंसियों द्वारा इसकी 4744 करोड़ की संपत्ति अटैच की जा चुकी है।


    मेहुल चौकसी ने 6100 करोड़ का बैंक फ्राड किया, जुलाई 2019 तक एजेंसियों द्वारा इसकी 2534.7 करोड़ की संपत्ति अटैच की जा चुकी है।


      इसके अलावा नीरव मोदी लंदन की जेल में सजा काट रहा है। विजय माल्या की प्रत्यर्पण के खिलाफ दायर अर्जी खारिज हो चुकी है। मेहुल चौकसी के प्रत्यर्पण की कार्यवाही चल रही है। एंटीगुआ के प्रधानमंत्री ने सितंबर 2019 में बयान दिया था कि जल्द ही मेहुल चौकसी भारत को सौंप दिया जाएगा।


     ये सब किया है मोदी सरकार ने, मोदी सरकार पर कोई भी निराधार आरोप लगाने से पहले तथ्यों को जांच करनी चाहिए।


लेबल: