जानिए आखिर क्या है यह तब्लीगी जमात और, कैसे करती है काम, एक विश्लेषण
कोरोना वायरस के मामले दिल्ली में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। तेलंगाना में कोरोना संक्रमण से सोमवार को 6 लोगों की मौत हो गई है। कहा जा रहा है कि ये लोग दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज (सेंटर) के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लोग इस कार्यक्रम में आए थे। अब केंद्र और राज्य सरकारें इन सभी लोगों को ढूंढकर उनकी जांच करने में जुटी हैं, क्योंकि इस धार्मिक कार्यक्रम में मलेशिया और इंडोनेशिया आदि देशों के भी कुछ लोग शामिल हुए थे।
तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर मोहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। यह इस्लामिक आंदोलन देवबंदी विचार धारा से प्रभावित है और उसके सिद्धांतों का दुनिया भर में प्रचार करता है। तबलीगी जमात हरियाणा से विशेष रिश्ता है। दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते हैं। उनके दौर में इनमें से अधिकांश ने मुगल शासनकाल में इस्लाम धर्म को स्वीकार किया था। 20वीं सदी में उस इलाके में मिशनरी ने अपना काम शुरू किया। बहुत से मेवाती मुसलमान मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म छोड़कर इसाई बन गए।
इसे दो तरह से तरह से देखा जाना चाहिए
तब्लीगी जमात इसाइयों के जोशुआ प्रोजेक्ट का ही शुक्रवारी प्रतिरूप है। जोशुआ इतवारी द्वारा चलाया जाने वाला प्रोजेक्ट मुख्यतः "वैटिकन चर्च" द्वारा संचालित और वित्त पोषित है।
शुक्रवारियों के अनुसार, “तब्लीगी” का मतलब सातवें आसमानी की कही बातों का प्रचार करने वाला होता है। वहीं जमात का मतलब होता है एक खास मजहबी समूह, जो शुक्रवारियों के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए दुनिया भर में निकलते हैं। जबकि मरकज वो जगह है, जहां यह सभी मिल कर बैठक करते हैं या एक साथ जमा होते है। तो मरकज़ अर्थात् स्थान और तब्लीगी अर्थात् शुक्रवारियों का जोशुआ संस्करण।
तब्लीगी जमात दक्षिण दिल्ली के निज़ामुद्दीन में स्थित है, और पूरी दुनिया के मजहबी यहाँ इकठ्ठा होते हैं। अधिकांश के पास लॉग टर्म वीज़ा (थैंक्स टू सत्तर वर्षों का कांग्रेसी शासन) है। और पूरे विश्व में यह धर्मातरण का काम निज़ामुद्दीन से ही संचालित करते हैं। और पूरे भारत के मक़बरा चाटू मूर्ख हिन्दु उसी के पास जाकर मुर्दे की मज़ार पर चादर और पैसा चढ़ाते थे । हम मूर्ख हिन्दु चमत्कार के पीछे भागने वाली सबसे धूर्त क़ौम हैं।
पिछले सत्तर वर्षों से उन्हें सरकारी व्यवस्था ने संरक्षण और सेकुलर हिन्दुओं ने उन्हें धन मुहैया करवाया हुआ था, और अपना ही गला कटवाने के लिए चादर चढ़ाते थे। जो वास्तव में हमारा ही कफ़न बन रही थी। इस मरकज़ की जानकारी सरकार को थी, पर केंद्र सरकार इन धूर्तों को रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी।
जोशुआ जमात एक ईसाई संगठन है, यह एक ईसाई मिशनरीज़ द्वारा चलाया जाने वाला प्रोजेक्ट है जो मुख्यतः "वैटिकन चर्च" द्वारा संचालित और वित्त पोषित है। इसका मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो स्प्रिंग्स में स्थित है। जिसको वहाँ की सरकारों का खुला सपोर्ट है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को ईसाई बनाना उनकी भाषा में बोले तो अंधकार से प्रकाश की तरफ़ ले जाना। इसके लिए वह लोग अन्य मत, मज़हब, पंथ और धर्म से जुड़े लोगों को टार्गेट करते हैं
अगर थोड़ा बहुत भी ध्यान दिए जाय तो UPA के विगत दस वर्ष के शासनकाल में हुआ धर्म परिवर्तन और उसके आँकड़े पर नज़र डालिए तस्वीर साफ़ होती दिखेगी। उपरोक्त वर्णन में केवल जोशुआ और ईसाई मतांतरण पर हल्का परिचय दिया है, कि इसका गठन किस लिए हुआ और यह काम क्या करता है। लेकिन प्रश्न है, इनको पैसे कौन देता है और दूसरे देशों की सरकार कुछ कर क्यूँ नहीं पाती?
जब यह प्रोजेक्ट भारत के लिए लॉंच किया गया तो यह पूर्ण रूप से शोध आधारित था। भारत के सभी व्यक्ति समूह की डेमोग्राफ़िक अनालिसिस इकट्ठा की गई, और इस काम को अंजाम दिया गया डॉक्टर के॰एस॰ सिंह के नेतृत्व में एक टीम द्वारा। इस प्रोजेक्ट को डॉक्टर के॰एस॰ सिंह ने "people of India" के नाम से किया था। यह किताब 1985 में ऐन्थ्रॉपलॉजिकल ग्रूप ऑफ़ इंडिया ने पब्लिश की थी। जिसमें भारत के लोगों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का पूरा ब्योरा था। इस प्रोजेक्ट डाटा को ईसाईयों ने और ईवैंजेलिकल ग्रूप ने भरपूर इस्तेमाल किया अपने काम को अंजाम देने के लिए।
हम इस तब्लीगी जमात से तब तक नहीं लड़ सकते जब तक हम किसी भी मज़ार पर जाना बंद न करें, शुक्रवारियों और इतवारियों को पहचाने और उनको अपना धन देना बंद करें।
आज का लेख इसी विषय पर है। धर्मांतरण का ज़बरदस्त विरोध किया जाए और जो भी शुक्रवारी-इतवारी से संबंध रखता हो उसको भी दर किनारे किया जाए।
(उपरोक्त लेख सोशल मीडिया के विभिन्न स्त्रोतों से संकलित किया गया)
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