देश दुनिया में चलने वाला ये खौफनाक मंजर किसी किसी के लिए हंसी और ठिठोली का वाक्या बन गया है? आखिर ऐसा क्यों? क्योंकि उनके घर में किसी को इस महामारी ने छुआ नहीं है इसलिए?
कहते और लिखते हुए दिल भर सा रहा है...देश में मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं...प्रशासन तो सख्त है...आखिर कमी कहां रह जा रही है...जो ये आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं...मंजर और भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है...लेकिन देश दुनिया में चलने वाला ये खौफनाक मंजर किसी किसी के लिए हंसी और ठिठोली का वाक्या बन गया है? आखिर ऐसा क्यों? क्योंकि उनके घर में किसी को इस महामारी ने छुआ नहीं है इसलिए? खुद को तीसमार खान और किसी से कम न समझने वाले कुछ लोग बढ़ते मामले और मौतों के आंकड़ों पर तालियां पीटने से पीछे नहीं रह रहे...जी हां सुनने में अजीब है लेकिन सच है...ये वही लोग हैं जो खुद को चौड़े होकर समाज का चौथा स्तंभ बताते हैं.. शायद उनको अंदाजा भी नहीं की कोरोना से होने वाली मौत कितनी भयानक और दर्दनाक होती है...सोचिए पीड़ित को उसके परिवार से दूर कर दिया जाता है...उसे न तो कोई मिल सकता है...न कोई देख सकता है और छूने की तो दूर-दूर तक कोई उम्मीद ही नहीं...ये भी सोचिए अगर मौत हो जाती है तो बॉडी उसके परिवार को नहीं दी जाती...क्या ये सच में मजाक का वाक्या है...शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को खुद पर की वो ये क्या कर रहे हैं? और क्यों कर रहे हैं? काश जिन लोगों के ये लिखा वो कुछ समझे और शर्म करें...ये मंजर वाकई खौफनाक हो सकता है...
लेबल: संपादकीय
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