रविवार, 29 मार्च 2020

कांटो के ताज के साथ शिवराज की वापसी क्या मध्य्प्रदेश को नई दिशा देने में कामयाब हो पाएगी ,जबकि पिछली सरकार खजाना खाली होने का विधवा विलाप 15 महीनों से करती रही ।

शिवराजसिंह चौहान को आप किस रूप में देखते हैं? यह सवाल आपसे पूछा जाए तो स्वाभाविक रूप से जवाब होगा कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लेकिन इससे आगे आपसे पूछा जाए कि एक आम आदमी के रूप में क्यों नहीं तो जवाब देने में थोड़ा वक्त लग सकता है। इस सवाल का जवाब देने में वक्त लगना स्वाभाविक है क्योंकि जिस कालखंड में हम जी रहे हैं अथवा पिछला समय हमने जो गुजारा है, उसमें व्यक्ति को उसके गुणों से नहीं बल्कि उसके पद और पद की हैसियत से पहचाना है। स्वाभाविक है कि शिवराजसिंह चौहान की पहचान एक मुख्यमंत्री के रूप में है और इतिहास के पन्नों में भी उन्हें इसी पहचान के साथ दर्ज किया जाएगा लेकिन सच तो यह है कि अपना सा लगने वाला यह मुख्यमंत्री हमारे बीच का, आज भी अपना सा ही है। शिवराजसिंह के चेहरे पर तेज है तो कामयाबी का लेकिन मुख्यमंत्री होने का गरूर पहले भी नहीं रहा और आज भी नहीं होगा। चेहरे पर राजनेता की छाप नहीं। सत्ता के शीर्ष पर बैठने की उनकी कभी शर्त नहीं रही बल्कि उनका संकल्प रहा है प्रदेश की बेहतरी का। वे राजनीति में आने से पहले भी आम आदमी की आवाज उठाने में कभी पीछे नहीं रहे। वे किसी विचारधारा के प्रवर्तक हो सकते हैं लेकिन वे संवेदनशील इंसान है। एक ऐसा इंसान जो अन्याय को लेकर तड़प उठता है और यह सोचे बिना कि परिणाम क्या होगा, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने निकल पड़ता है। बहुतेरों को यह ज्ञात नहीं होगा कि शिवराजसिंह चौहान किसी समय मजदूरों को कम मजदूरी मिलने के मुद्दे पर अपने ही परिवार के खिलाफ खड़े हो गए थे। शिवराजसिंह चौहान का यह तेवर परिवार को अंचभा में डालने वाला था। मामूली सजा भी मिली लेकिन उन्होंने आगाज कर दिया था कि वे आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाते रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान में कुछ कमियां ना हो लेकिन जो खूबियां उनके व्यक्तित्व में है, वह उन कमियों को बौना कर देती है। 

 

कुछ पुराने दिनों को याद कर लेना भी इस अवसर पर सामयिक हो जाता है। ज्ञात रहे कि बीते 13 सालों में शिवराजसिंह चौहान के कांधे पर हाथ रखकर सैकड़ों लोग यह कहते मिल जाते थे कि शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं. ‘शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं’, इसमें अपनापन तो था ही लेकिन एक भाव यह भी कि देखो हमारे साथ पढ़ा विद्यार्थी, हमारा दोस्त शिवराजसिंह आज मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री है। थोड़े से लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि ‘हम शिवराजसिंह के साथ पढ़े हैं' और थोड़े से लोग होंगे जो कहते मिल जाएंगे- ‘शिवराजसिंह और हम साथ पढ़े हैं।’ शिवराजसिंह के साथ सहपाठी होने की यह गर्वानुभूति सालों गुजर जाने के बाद हो रही है तो इसलिए कि शिवराजसिंह चौहान जब भोपाल के अपने स्कूल ‘मॉडल स्कूल’ में जाते हैं तो मुख्यमंत्री बनकर नहीं, स्कूल के एक पुराने विद्यार्थी की तरह। शिक्षकों का चरण स्पर्श करना नहीं भूले। सहपाठियों को नाम से याद रखना और उन्हें संबोधित करना उनकी सादगी की एक झलक है।


मध्यप्रदेश में 15 माह तक चली कांग्रेस की कमलनाथ सरकार इन पन्द्रह महीनों में खाली खजाने को लेकर ही रोती रही। जिसके चलते किसान कर्जमाफी का जो वादा विधानसभा चुनाव के पूर्व तत्कालीन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया था, वह तीन चरणों में कमलनाथ सरकार ने पूरा करने की योजना बनाई थी। जिसमें दूसरे चरण की कर्जमाफी शुरू ही हुई थी कि अल्पमत में चल रही कमलनाथ सरकार को दो सप्ताह चले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद इस्तीफा देना पड़ा। 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार को 15 महीनों में ही सत्ता गंवानी पड़ी। जिसके बाद एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश के सत्ता की कमान सौंप दी है। लेकिन इस बार शिवराज सिंह चौहान ने ऐसे दौर में सत्ता संभाली है जब कोरोना जैसी महामारी से देश ही नहीं पूरा विश्व जूझ रहा है। सत्ता की बागडोर हाथ में लेते ही कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर शिवराज सिंह चौहान ने पहला निर्णय लिया है।  

कोरोना वायरस संकट से मध्यप्रदेश भी अछूता नहीं है। प्रदेश में अब तक कोरोना संक्रमित व्यक्तियों के 26 मामले सामने आ चुके है। जिसमें से 2 लोगों की मौत हो चुकी है। शुक्रवार, 27 मार्च 2020 तक 24 कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की पहचान हो चुकी है। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। जिसको लेकर शिवराज सरकार द्वारा लगातार अहतियात बरती जा रही है। जहां पूरे प्रदेश में लॉक डाउन के दौरान कर्फ्यू की घोषणा की गई है तो वही जिला प्रशासन और पुलिस को सतर्क रहने के निर्देश जारी किए गए है। जिला स्तर पर कोरोना संक्रमण से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक अस्पताल चिंहित किया गया है। यही नहीं आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार ने कई अहम कदम उठाए है। 

 

शिवराज सरकार ने उद्योगपतियों, सरकारी कर्मचारीयों, जनप्रतिनिधियों और आम जनता से अपील की है कि वह मुख्यमंत्री राहत कोष में अपनी सामर्थ्य अनुसार राशि दान दें ताकि कोरोना के खिलाफ युद्ध स्तर पर किए जा रहे प्रयासों में सरकार को धन की कमी न हो। हालंकि शिवराज सरकार ने इस दौरान सरकारी स्तर पर बीपीएल परिवारों को 1 माह का राशन निशुल्क देने, प्रदेश के 46 लाख पेंशनर्स को सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत 2 माह का एडवांस 1200 रूपए भुगतान करने के निर्देश के साथ ही संनिर्माण कर्मकार मंडल के अंतर्गत मजदूरों को 1 हजार रूपए की सहायता राशि के साथ ही सहरिया, बैगा, भारिया जनजातियों के परिवार के खाते में एडवांस राशि 2000 रूपए भेजी जाने का एलान किया है। इस दौरान केन्द्र की नरेन्द मोदी सरकार ने भी राहत पैकेज की घोषणा की है। केन्द्र सरकार ने विशेष पैकेज के तहत 1 लाख 70 हजार करोड़ रूपए के विशेष पैकेज का ऐलान किया है।  

 

मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था है। जिसमें पिछले कुछ वर्षों से लगातार उछाल देखी जा रही थी लेकिन हाल ही के दिनों में प्राकृतिक आपदा के चलते बुरे दौर से गुजर रही है। मध्यप्रदेश कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला राज्य है। यहां पर गेहूं, सोयाबीन, चना, गन्ना, चावल, मक्का, कपास, राई, सरसों और अरहर का उत्पादन प्रमुख तौर पर किया जाता है। वही लघु वनोपज जैसे तेंदूपत्ता, साल बीज, सागौन बीज, और लाख आदि भी राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए योगदान देते हैं। मध्यप्रदेश में 5 विशेष आर्थिक क्षेत्र यानि SAZE हैं, जिनमें 3 आईटी/आईटीईएस (इंदौर, ग्वालियर), 1 खनिज आधारित (जबलपुर) और 1 कृषि आधारित (जबलपुर) शामिल हैं। जबकि इंदौर, राज्य का प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र है। राज्य के केंद्र में स्थित होने के कारण, यहाँ कई उपभोक्ता वस्तु कंपनियों ने अपनी विनिर्माण केंद्रों की स्थापना की है। वही खनिज की बात करें तो मध्यप्रदेश में देश का हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अन्य प्रमुख खनिज भंडारों में कोयला, कालबेड मीथेन, मैंगनीज और डोलोमाइट शामिल हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश में 6 आयुध कारखाने है, जिनमें से 4 जबलपुर (वाहन निर्माणी, ग्रे आयरन फाउंड्री, गन कैरिज फैक्टरी, आयुध निर्माणी खमरिया) में स्थित है, बाकि एक-एक कटनी और इटारसी में हैं। यहां पर भारतीय सशस्त्र बलों के लिए उत्पादों का निर्माण किया जाता हैं। तो दूसरी ओर राज्य सरकार की आय में वृद्धि करने वाला मध्यप्रदेश में पर्यटन उद्योग भी जोर-शोर से बढ़ रहा है, वन्यजीव पर्यटन और कई संख्या में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के स्थानों की उपस्थिति इनका मुख्य कारण हैं। सांची और खजुराहो में विदेशी पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। प्रमुख शहरों के अलावा अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में भेड़ाघाट, भीम बेटका, भोजपुर, महेश्वर, मांडू, ओरछा, पचमढ़ी, कान्हा और उज्जैन शामिल हैं। कोरोना संक्रमण के चलते लॉक डाउन और कर्फ्यू के दौरान यह अपने निचले स्तर पर आ गई है। 

सरकार का खजाना पहले से ही खाली था। प्रदेश पर पिछले साल 31 मार्च तक एक लाख 52 हजार 745 करोड़ रुपए का कर्ज था, जो इस साल 31 मार्च की तारीख में बढ़ कर एक लाख 80 हजार 988 करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है। वही कोरोना संक्रमण की मार भी अर्थव्यवस्था पर पर पड़ी है। अर्थव्यवस्था के जानकारों की मानें तो इस समय मध्यप्रदेश अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। राज्य सरकार के खजाने में आय के प्रमुख स्रोत आबकारी और पेट्रोलिय पदार्थों के रूप में राजस्व प्राप्त होता था। लेकिन लॉक डाउन की वजह से यह दोनों स्रोत भी बंद पडे है। जहाँ आबकारी से आय न के बराबर हो गई है, तो वही लॉक डाउन कर्फ्यू के दौरान वाहन न चलने से पेट्रोल-डीजल की खपत भी कम हुई है। जिसका सीधा असर सरकार के खजाने पर पड़ रहा है। अर्थव्यवस्था के जानकार आदित्य जैन मनिया का कहना है कि कोरोना के चलते राज्य की कमान संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान ने कांटो का ताज पहना है। अब उन्हें सिर्फ केन्द्र सरकार के विशेष पैकेज का ही आसरा है, जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकती है। इसके बाद भी इससे उबरने में प्रदेश को करीब एक साल का वक्त लगेगा। लेकिन कोरोना की वजह से लॉक डाउन और कर्फ्यू के साथ प्राकृतिक आपदा ने प्रदेश की कमर तोड़कर ऱख दी है। मध्‍यप्रदेश 30, 8,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला राजस्थान के बाद दूसरा सबसे बड़ा भारतीय राज्‍य है, 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 7,25,97,565 है। कोरोना संक्रमण के चलते अब राज्य की शिवराज सरकार को आर्थिक मोर्चे पर खराब अर्थव्यवस्था के चलते मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 


 

 

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