शनिवार, 28 मार्च 2020

कानपुर में कोरोना वायरस से नही भूख से मरने को मजबूर लोग , दो दिनों से कई घरो में नही जला चूल्हा।

(नितिन त्रिपाठी)। उत्तर प्रदेश में लॉक डाउन के चलते कोरोना जैसी महामारी से नही बल्कि भूख से मरने को मजबूर है कानपुर की जनता।आइये आपको बताते है यूटीआई की टीम की ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट । लोग कह रहे है कि घर में राशन खत्म हो गया है और सुबह से कुछ खाया भी नही , दो दिन हो गए घर का चूल्हा भी नहीं जला है। ऐसा ही चलता रहा तो कोरोना से नहीं हम भूखे मर जाएंगे । पनकी शताब्दी नगर स्थित काशीराम कॉलोनी के निवासियों ने  बताया की एक हफ्ता हो गया, काम पर नहीं गए हैं और जेब में पैसा भी खत्म हो गया है । आसपास की सभी दुकानें बंद है ,चाह कर भी राशन नहीं खरीद सकते । घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं कुछ तो दूध के सहारे ही जी रहे हैं और कुछ थिंदा बहुत कहा के । वहीं घर में सब भूखे हैं, जो थोड़ा बहुत था बच्चों को खिला दिया।
   देश में लाकडाउन घोषित होने के बाद शहर के पनकी शताब्दी नगर स्थित काशीराम कालोनी के निवासियों की स्थिति काफी दयनीय है। कॉलोनी में लगभग 3000 से ज्यादा लोग रहते हैं और सभी रोजमर्रा के मामूली काम करके कमाने वाले लोग हैं। लॉक डाउन की वजह से पिछले 7 दिनों से कोई अपने घर से नहीं निकल पा रहा है, जिससे कमाई ठप हो गई है। शनिवार को हम ने मौके पर जाकर स्थिति को देखा तो हालात बेहद चिंताजनक थे। लोगों के आंसू निकल रहे थे और  उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा साहब दो दिन से भूखे हैं कुछ खिला दीजिए । घरों के भीतर जाकर स्थिति देखी तो राशन के नाम पर आटा और चावल खत्म हो गया था। चूल्हे भी ठंडे पड़े हुए थे। कहीं छोटा बच्चा रो रहा था , तो कहीं पानी और शरबत पीकर लोग अपनी भूख मिटाने की कोशिश कर रहे थे ‌। सबकी आंखों में आंसू चेहरे पर सरकार के प्रति गुस्सा झलक रहा था। काशीराम कॉलोनी के निवासियों का कहना था सरकार ने लाक डाउन तो कर दिया, लेकिन हमारे खाने की कोई व्यवस्था कर दी होती तो ज्यादा बेहतर होता। शहर को बंद हुए लगभग 6 दिन से ज्यादा का समय बीत गया है लेकिन हमारे पास अभी तक ना कोई प्रशासन का आदमी आया और ना ही कोई हमारी सुध लेने वाला है । टीवी पर सरकार कह रही है घर-घर राशन पहुंचाया जाएगा लेकिन यहां तो लगता है हम लावारिस हैं । कॉलोनी में रहने वाली दिव्यांग बबली ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा लाकडाउन तो कर दिया पर हम मरे या जिए सरकार को क्या फर्क पड़ेगा। घर में तीन बच्चे और पति है और सभी दो दिन से सब भूखे हैं। मर भी जाएंगे तो किसी को क्या फर्क पड़ता है। 


कालोनीवासियों से सीधी बातचीत।


दो दिन से घर में खाना नहीं बना, शरबत पीकर पेट भरा है। अभी घर के बाहर निकली हूं तो पड़ोसी ने बिस्कुट खिला दिया वही खाया।
रेशमा बेगम


पति रिक्शा चलाते हैं ।  शहर बंद हो गया तो रिक्शा भी नहीं चला पा रहा है , घर में ना पैसा है ना राशन दो दिन से भूखे हैं। 
रमा देवी


रिक्शा चलाता हूं । दो दिन हो गए घर का चूल्हा ठंडा पड़ा है । चाय और बिस्कुट के सहारे जी रहा हूं देखता हूं कब तक सांसे साथ देंगी ।
संतराम


साहब मजदूरी करता हूं । एक हफ्ते से काम नहीं मिला घर में 5 बच्चे हैं ।घर में कुछ चावल बचा था वह बच्चों को शक्कर के साथ मिलाकर खिला दिया अब वह भी खत्म हो गया है। पत्नी और खुद 2 दिन से पानी पी पीकर जी रहे हैं ।
सुरेश कश्यप


पति मनोज मजदूरी करते हैं । घर में सात साल की छोटी बच्ची है । आज तक उसका किसी तरह पेट भरा है आगे उसके पेट भरने का भी चारा नहीं है।
आरती


घर में दो बच्चे और पत्नी है ।  बच्चों को दूसरे के घर से मांग कर चावल खिलाएं हैं ,हम खुद भूखे हैं।
पता नहीं साहब ऐसा कब तक चलेगा ।
ललित



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