शनिवार, 14 मार्च 2020

बिहार में राज्यसभा के प्रत्याशियों को लेकर हर दल में नाराजगी, राजद ने जमीनदार व उधोगपति को थमाया टिकट, जीत का सेहरा बंधना तय |

 बिहार में राज्यसभा की 5 सीटें खाली हो रही है। जद(यू.) के 3 व भाजपा के 2 सदस्य रिटायर होने वाले हैं। हालांकि, इनमें एनडीए को र्सिफ 3 सीटें ही वापस मिलनी तय है। इनमें से 2 सीट जद(यू.) और 1 सीट भाजपा को मिलनी है। फायदा महागठबंधन से जुड़े सबसे बड़े दल राजद को ही होना है। उसे 2 अतिरिक्त सीटें मिलने जा रही है। क्योंकि राज्यसभा के उपसभापति व जद(यू.) के हरिवंश नारायण सिंह, रामनाथ ठाकुर व कहकशां परवीन और भाजपा के डॉ.सी.पी.ठाकुर व आर.के.सिन्हा का कार्यकाल इस वर्ष 9 अप्रैल को समाप्त होने जा रहा है। हालांकि, कहकशां परवीन को विधान परिषद में भेजने की चर्चा है।


वैसे तो बिहार से राज्यसभा के लिए 5 सीटों पर ही चुनाव होना है। लेकिन, विभिन्न दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किए जाने के बाद बिहार में बहुत से राजनीतिक व सामाजिक समीकरण बनते-बिगड़ते दिख रहे हैं। राजद ने तो ऐलान करते ही अपने प्रत्याशियों के पर्चे तक भर दिए। जबकि जद(यू.) व भाजपा ने नामांकन के अंतिम दिन यानी बीते 13 मार्च को नामजदगी का पर्चा भरा है। इस बार के राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशियों का नाम सामने आते ही हर दल में थोड़ी-बहुत नाराजगी देखने को मिल रही है। राजद व भाजपा प्रत्याशियों को लेकर नारजगी जगजाहिर हो चुका है। र्सिफ, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड यानी जद(यू.) ही ऐसा दल है, जहां कोई नाराजगी देखने को नहीं मिल रही है।


राजद प्रत्याशियों को लेकर सबसे अधिक नाराजगी कांग्रेस व शरद यादव के दल में दिख रही है। राजद की ओर से राज्यसभा चुनाव में अपने दो प्रत्याशियों की ऐलान के बाद महागठबंधन में असंतोष पैदा हो गया है। क्योंकि राज्यसभा की एक सीट पर कांग्रेस ने अपनी दावेदारी पेश की थी। लेकिन, राजद ने उसे नजरअंदाज कर दिया। जबकि कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने तो पत्र लिख कर राजद को 17वीं लोकसभा चुनाव में किए गए वायदा को याद भी कराया था। लेकिन, राजद पर इसका कोई भी असर नहीं पड़ा। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि शक्ति सिंह गोहिल का कोई पत्र राजद को नहीं मिला था। बल्कि, जगदानंद सिंह ने शक्ति सिंह गोहिल के पत्र को ही फर्जी करार कर दिया है। इसके बाद अब कांग्रेस हमलावर की मुद्रा में है। यही वजह है कि कांग्रेसी नेता व एमएलसी प्रेमचन्द्र मिश्रा ने बागवती तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि भविष्य में महागठबंधन को अड़ियल रवैये के साथ चलाना कठिन होगा। भाजपा ने कार्यकाल पूरा करने वाले अपने दोनों सदस्यों को फिर से राज्यसभा भेजने से मना कर दिया है। लेकिन, एक सदस्य व पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ .सी.पी.ठाकुर के पुत्र व पूर्व एमएलसी विवेक ठाकुर को टिकट जरूर थमा दिया है। जिसको लेकर दल के अन्दर नाराजगी दिख रही है। वर्तमान में भाजपा र्सिफ एक ही प्रत्याशी को राज्यसभा में भेजने की स्थिति में है। लेकिन, भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले विवेक ठाकुर को प्रत्याशी बनाए जाने से दल का एक मजबूत वोट बैंक यानी कायस्थ समाज काफी नाराज दिख रहे हैं। अपना पहला कार्यकाल पूरा कर रहे राज्यसभा सांसद आर.के.सिन्हा को तरजीह नहीं मिलने के बाद अब कायस्थ समाज में गोलबंदी प्रारंभ हो गई है। क्योंकि देश स्तर पर आर.के.सिन्हा का कायस्थ समाज में बहुत सम्मान है। इनका टिकट काटे जाने पर कायस्थ समाज में गहरा रोष है। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने बजावता प्रेस वार्ता आयोजित कर अपनी नारजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि आर.के.सिन्हा या उनके पुत्र ऋतुराज को टिकट नहीं देकर भाजपा ने अपने कायस्त विरोधी राजनीति व चेहरे को उजागर कर दिया है। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविनंदन सहाय ने 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोट करने की इच्छा तक व्यक्त कर चुके हैं।


उधर, राजद सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री लालु प्रसाद के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद से र्सिफ कांगे्रस पार्टी की ही नाराजगी नहीं है। बल्कि, लोकतांत्रिक जनता दल यानी लोजद सुप्रीमो व पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव तक नाराज दिख रहे हैं। कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी रहे पूर्व एनडीए संयोजक शरद यादव को उम्मीद थी कि राजद सुप्रीमो लालु प्रसाद उन्हें इस बार राज्यसभा की दहलाज लांगने का मौका जरूर देंगे। जबकि शरद यादव बहुचर्चित चारा घोटाला के मामलों में दोषी करार किए जाने के बाद से ही पिछले दो वर्षों से ज्यादा समय से रांची स्थित होटवार के बिरसा मुंडा सेन्ट्रल जेल की सलाखों के पीछे कैद और इन दिनों रिम्स के पेइंग वार्ड में इलाज करा रहे लालु प्रसाद के दरबार में भी कई बार हाजरी लगा चुके हैं। लेकिन, उन्हें राज्यसभा में जाने का मौका नहीं दिया गया है। जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालु प्रसाद के बीच रिश्ते में खटास आई तो शरद यादव ने लालु प्रसाद का ही साथ दिया। बाद में लोकतांत्रिक जनता दल का गठन कर खुद अध्यक्ष बन गए और महागठबंधन बरकरार रहे इसकी अगुआयी हमेशा करते रहे हैं। 17वीं लोकसभा चुनाव में लालु प्रसाद ने उन्हें मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से राजद का टिकट थमाकर चुनावी दंगल में उतारा। लेकिन, वह जद(यू.) के दिनेश चन्द्र यादव से 30 हजार 1527 वोटों से पराजित हो गए। 17वीं लोकसभा चुनाव के बाद उनके दल का विलय भी राजद में आजतक नहीं हो सका है। अब शरद यादव जैसे दिग्गज नेता के सामने कोई रास्ता भी नहीं बचा है कि वह किधर जाएं। नामांकन का दौर भी खत्म हो चुका है। एनडीए समर्थित जद(यू.) के प्रत्याशी हरिवंश नारायण सिंह व रामनाथ ठाकुर और भाजपा के विवेक ठाकुर ने बीते 13 मार्च को नामांकन दाखिल किया है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के अलावा जद(यू.) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल सहित दोनों दल के कई नेता विराजमान थे। जबकि महागठबंधन समर्थित राजद प्रत्याशी प्रेमचन्द गुप्ता व अमरेन्द्रधारी सिंह ने बीते 12 मार्च को ही नामजदगी का पर्चा भरा है। इस दौरान राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदनंद सिंह, लालु पुत्र नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव व विधायक भोला यादव सहित कई नेता विराजमान थे। नमांकन पत्रों की जांच 16 मार्च को होनी है। दावेदारी वापस लेने की अंतिम तिथि 18 मार्च है। जांच में सबकी दावेदारी सही पाई गई और 18 मार्च तक किसी ने नाम वापस नहीं लिया तो उसी दिन संध्या 4 बजे तक सबके निर्विरोध निर्वाचन का ऐलान तक कर दिया जायेगा। जिस दिन इन लोगों के सर पर शेहरा भी बंधना तय है। 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व बिहार में यह अंतिम बड़ा चुनाव है।  


उल्लेखनीय है कि बिहार से राज्यसभा में 16 सीटें हैं। इनमें जद(यू.) के 6, भाजपा के 4 व राजद के 3 सदस्य हैं। जबकि कांग्रेस व लोजपा के एक-एक सदस्य हैं। एक सीट खाली है। राज्यसभा की एक सीट के लिए 41 विधायकों के समर्थन की दरकार है और इस लिहाज से रिक्त होने वाली 5 सीटों में 2 राजद व 2 जद(यू.) और एक सीट पर भाजपा की जीत तय मानी जा रही है। इस बार राजद ने सामाजिक समीकरण का पूरा ख्याल रखा है। राजद की छवि भूमिहार व ब्राम्हण विरोधी रही है। यही कारण है कि दल ने सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखकर भूमिहार जाति को राज्यसभा का टिकट थमाया है। हालांकि, इसका अंदाजा पूर्व में किसी को नहीं था कि गरीबों के नाम पर हमेशा राजनीति करने वाले राजद सुप्रीमो लालु प्रसाद पटना के जमीनदार घराने से ताल्लुक रखने वाले करोड़पति अमरेन्द्रधारी सिंह भी राज्यसभा प्रत्याशी हो सकते हैं। लेकिन, भ्रष्टाचार की गंगोत्रि में गोता लगाकर लालु प्रसाद ऐसा खेल वर्षों से खेल रहे हैैं। उधोगपति प्रेमचन्द गुप्ता लालु परिवार से वर्षों से जुड़े रहे हैं। इनके कारण ही लालु पुत्र नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी आदि तक को दिल्ली की पाटियाला हाउस कोर्ट तक की चक्कर लगानी पड़ रही है।  



 



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