सात बार के विधायक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवती सिंह विशारद का निधन।
सात बार के विधायक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवती सिंह विशारद का निधन।
विधायक का आज की राजनीति और राजनेताओं के बारे में कहना था कि वह जनता के लिए नहीं खुद की कमाई के लिए इस क्षेत्र में आते हैं।
कानपुर। मेरे पास गाड़ी, बंगला, बैलेंस है, सात बार तक विधायक रहे तुम्हारे पास क्या है? मेरे पास जनता का अटूट प्यार और इमान है। यह कोई फिल्म का सीन नहीं हकीकत है। आज जहां प्रधान, पार्षद सभासद, विधायक और सांसद बनने के बाद नेताओं के पास अचूक संपत्ति हो जाती है, वहीं यूपी विधानसभा में सात बार जाने वाले धनकुट्टी निवासी पूर्व एमएलए भगवती सिंह विरशाद ( 98 ) के पास अपना निजी मकान नहीं है। वह अपने छोटे बेटे के परिवार के साथ किराए के घर में जिन्दगी का आखरी सफर काट रहे हैं। पत्रिका संवाददाता से खास बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि हमारे पास धन दौलत नहीं है पर आज भी हमारे किस्से गंगा के इस पार और उस पार (उन्नाव) लोगों के जुबान पर हैं। विधायक का आज की राजनीति और राजनेताओं के बारे में कहना था कि वह जनता के लिए नहीं खुद की कमाई के लिए इस क्षेत्र में आते हैं।
पिता जी के अपमान के बाद बने मुखबिर
धनकुट्टी मोहल्ले में रमेश तिवारी के मकान में रहने वाले भगवती सिंह विरशाद का जन्म 30 सितंबर 1920 को उन्नाव जिले में एक मजदूर के घर में हुआ था। गांव में 5वीं तक की शिक्षा लेने के बाद भगवती कानपुर में अपने बाबू जी के पास आकर रहने लगे। इनके पिता अंग्रेज अफसर के घर में मजदूरी किया करते थे। विरशाद ने बताया कि 1932 का साल था, उस समय हमारी उम्र करीब बारह वर्ष की थी। अंग्रेज ने पिता जी से बूट पॉलिस के लिए कहा पर उन्होंने इंकार कर दिया, जिस पर वह गुस्से से आग बबूला हो गया और पिता जी को कलक्टरगंज थाने के पास पेड़ पर बंधवा दिया और उनकी जमकर पिटाई की। बस उसी दिन से हमारे दिल में फिरंगियों को लिए नफरत पैदा हो गई। हम क्रांतिकारियों से जुड़ गए और अंग्रेज पुलिस की हर एक गतिविधि की जानकारी उनको पहुंचाने लगे। इसके बदले हमें क्रांतिकारी एक आना हर माह पैसा दिया करते थे।
13 साल की उम्र में खड़ा किया संगठन
भगवती सिंह कहते हैं उन दिनों कांग्रेस पार्टी का बोलबाला था। पार्टी का क्रेज देख कांग्रेस में शामिल हो गया। 13 साल की उम्र में कानपुर के कपड़ा बाजार में मौजूद एक दुकान में काम करने लगे। कपड़ा बाज़ार में काम करने वाले कर्मचारियों का एक संगठन बनाया। फिर उनकी छुट्टी और काम करने के समय के लिए लड़े और उसमें कामयाब भी रहे। बताया, इसी दौरान एक कार्यकम्र में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी कानपुर आए थे। तिलकहॉल में हमारी मुलाकात बापू से हुई और उन्होंने पूछा बच्चे क्या बड़े होकर बनना चाहते हो तो हमने कहा गांधी, यह बात सुनकर बापू गदगद हुए और वहां मौजूद कांग्रेसियों से कहा कि यह एकदिन जरुर जनप्रतिनिधि बनेगा।
जरनलगंज से लड़े और गए पहला चुनाव
पूर्व विधायक भगवती ने बताया कि 1952 के विधानसभा चुनाव में पीएसपी पार्टी ने कानपुर के जनरलगंज सीट से हमें टिकट दिया। पार्टी को लीड कर रहे जय प्रकाश नारायण ने खुद दिल्ली बुला कर टिकट दिया था लेकिन मैं हार गया। इसके बाद 1957 के विस चुनाव में पीएसपी पार्टी ने दोबारा से उन्नाव के बारासगवर सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया। 1962 के चुनाव में बारासगवर सीट से कांग्रेस कैंडिडेट देवदत्त ने मुझे हरा दिया। 1967 के चुनाव में मैंने जीत दर्ज की। इसके बाद 1969 के विस चुनाव में मैं कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत गया। यहीं से कांग्रेस के साथ मेरा सफर शुरू हो गया। ये जीत का सिलसिला 1974 में भी जारी रहा। साल 1977 में बीजेएस के देवकी नन्दन से हार गया लेकिन 1980 और 1985 के चुनाव में जीत हासिल कर ली। साल 1989 में देवकी नंदन ने फिर से हरा दिया। 1991 में अपने आखरी चुनाव में चौधरी देवकी नंदन को हराकर मैं 7वीं बार एमएलए बना।
ससुराल से मंगवाई बैलगाड़ी, उसी से किया प्रचार
भगवती सिंह ने बताया कि 1957 का चुनाव हम लड़ रहे थे। प्रचार करने के लिए हमारे पीस कोई वाहन नहीं थे। इसी दौरान हमारे ससुर साहब हमसे मिलने के लिए आए। पत्नी कलावती से हमने कहा कि हर रोज पंद्रह से सोलह किमी पैदल चलते हैं तुम पिता जी से बैलगाड़ी कुछ दिन के लिए मांग लो। पत्नी ने ससुर साहब से बैलगाड़ी मांगी और वह खुद उन्नाव से लेकर कानपुर आ गए। हम पांच छह कार्यकर्ता उसमें सवार होकर निकल जाते और जहां रात हो जाती वहीं रुक जाते और चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुनते और निपटाते। मकान मालिक रमेश ने बताया कि उनके पिता और विधायक जी अच्छे मित्र थे और वह ही इन्हें घर पर लेकर आए। विधायक जी से पिता जी ने जब किराया लेने से मना किया तो इन्होंने समान बांधकर निकल लिए। थकहार हमारे पिता जी को किराया लेना पड़ा और आज भी वह हर साल बढ़ा कर पैसे देते हैं। रमेश ने बताया कि एमएलए रहने के दौरान विधायक जी गांव में लोगों की समस्या सुनते और उसे दूर करने के लिए किसी भी अधिकारी से बहस कर लेते थे।
जनता ही मेरी कमाई, एक बेटा दे रहा रोटी
इनके 5 लड़के और एक लड़की है, जिसमे एक बेटे की मौत हो चुकी है। बड़े बेटे रघुवीर सिंह रिटायर्ड मास्टर दूसरे नंबर के बेटे दिनेश सिंह रिटायर्ड एयर फोर्स, नरेश सिंह रिटायर्ड प्राइवेट जॉब, रमेश सिंह रिटायर्ड टेलीफोन विभाग में है। बेटी की शादी हो चुकी है। उनके साथ एक भतीजा और तीसरे नंबर का बेटा नरेश सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं। भगवती सिंह कहते हैं. मेरे पास अपना कोई मकान नहीं है और एमएलए रहने के दौरान कभी इस बारे में सोचा नहीं। मेरा मानना है कि जो नेता अपने घर के बारे में सोचता है वो दूसरों का कभी भी भला नहीं कर सकता। मैं अगर अपने घर के बारे में सोचता तो 7 बार विधायक नहीं बनता। लोग मुझे चुनाव लड़ाने के लिए मेरे दरवाजे पर हफ्तों नहीं बैठते। हालांकि मेरे बेटे भी मेरी इस सोच को नहीं मानतेए इसलिए वो आज अलग अपनी दुनिया बसाकर रह रहे हैं। एक बेटा गुजरात, दूसरा यूपी में कहीं और तीसरा बैंग्लोर में अपने परिवार के साथ रहता है। बस एक मेरे साथ ह
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