देश में साल दर साल होने वाली हत्याओं की दर में कमी आई है लेकिन प्रेम प्रसंग के कारण हत्या के मामले बढ़ रहे हैं।
हमारे देश में साल दर साल होने वाली हत्याओं की दर में कमी आई है लेकिन प्रेम प्रसंग के कारण हत्या के मामले बढ़ रहे हैं। हाल में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल 2001 से 2017 के बीच देश में ज्यादातर हत्याएं प्रेम और विवाह से जुड़े मामलों में दर्ज की गई हैं। हत्या जैसे अपराध के पीछे आम तौर पर तीन मकसद देखे गए हैं, एक तो निजी रंजिश, दूसरा संपत्ति विवाद और तीसरा प्रेम प्रसंग। पहले दो मामलों में हत्याएं अब भी ज्यादा होती हैं, लेकिन उनकी संख्या साल दर साल कम हो रही है। 2001 से 2017 के बीच निजी रंजिश के कारण हुई हत्याओं में 4 प्रतिशत और प्रॉपर्टी के झगड़े में हुए मर्डर में 12 फीसदी की कमी आई है। लेकिन प्रेम प्रसंग में हुई हत्याओं में 28 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
प्रेम में हत्या के बढ़ते मामले कहीं न कहीं हमारे समाज के मूल्यगत ठहराव की ओर इशारा कर रहे हैं। प्रेम करने की आजादी समाज में अब भी हर किसी को नहीं मिल सकी है। जीवन के अनेक प्रसंगों को समाज अपनी गिरफ्त में रखना चाहता है। पिछले एक-दो दशकों के सामाजिक-आर्थिक विकास से कुछ बंधन शिथिल हुए हैं। लड़कियों को घर से बाहर निकलने, शिक्षा पाने, नौकरी करने की आजादी मिली है। लड़के-लड़कियों के आपस में मिलने-जुलने के अवसर बढ़े हैं। लेकिन स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर समाज की पिछड़ी जेहनियत में बुनियादी बदलाव नहीं आया है। इसी तरह जाति-संप्रदाय जैसे बंधन ऊपरी तौर पर जरूर ढीले दिखते हैं पर अवचेतन में वे पहले जितने ही मजबूत बने हुए हैं।
लेबल: संपादकीय
<< मुख्यपृष्ठ