रविवार, 17 नवंबर 2019

अल्जाइमर को 70 साल के बुजुर्गों की बीमारी समझा जाता था वहीं, अब 40 और इससे कम उम्र के युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। तो आखिर ऐसा क्यों हो रहा है,

पहले जहां अल्जाइमर को 70 साल के बुजुर्गों की बीमारी समझा जाता था वहीं, अब 40 और इससे कम उम्र के युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। तो आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, क्या है अल्जाइमर के लक्षण, इलाज और बचाव का तरीका, यहां जाने ।




आखिर क्या है अल्जाइमर?



वरिष्ठ मनोचिकित्सिक डॉ. लव कौशिक ने बताया कि अल्जाइमर एक मानसिक विकार है, जिसके कारण मरीज की याददाश्त कमजोर होनी शुरू हो जाती है। आमतौर पर यह मध्यम उम्र या वृद्धावस्था में दिमाग के टिशू को नुकसान पहुंचने के कारण होता है। यह डिमेंशिया बीमारी का एक प्रकार है जिसका असर व्यक्ति की याददाश्त, सोचने की क्षमता, रोजमर्रा की गतिविधियों पर पड़ता है। दिमाग में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी के कारण अल्जाइमर की समस्या शुरू होती है। देश में अलग-अलग क्षेत्रों में की गई स्टडी के अनुसार कुल जनसंख्या के 1- 2 प्रतिशत लोगों में उम्र के साथ अल्जाइमर की बीमारी देखने को मिलती है।






पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को अल्जाइमर का खतरा





डॉक्टरों की मानें तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अल्जाइमर बीमारी का खतरा अधिक रहता है। डॉक्टरों के पास अल्जाइमर के इलाज के लिए आने वाले हर 10 मरीज में से 6 महिलाएं होती हैं। भारत अल्जाइमर रोग के मामले में दुनियाभर में तीसरे नंबर पर है। अल्जाइमर के मरीजों को दवाई के साथ-साथ थेरपी भी दी जाती है लेकिन उनकी देखभाल बेहद जरूरी होती है।

अल्जाइमर के लक्षण
नींद न आना
चिंता, परेशानी


स्मृति का खोना


निर्णय से जुड़ी समस्याएं
सवालों का बार-बार दोहराना
रोजमर्रा के कामों को करने में दिक्कत महसूस होना
किसी काम में मन न लगना, फोकस करने में दिक्कत होना
रुपयों का बेहतर प्रबंधन न कर पाना
अपने परिवारवालों को न पहचाना
कपड़े उल्टे-सीधे पहनना


कैसे बचें अल्जाइमर बीमारी से
अगर किसी को पता है कि उनके परिवार में किसी को अल्जाइमर रोग था या है तो उन्हें पहले से सोशल व लर्निंग ऐक्टिविटी पर ध्यान देना चाहिए। किताबें पढ़नी चाहिए। इसके अलावा गाने सुनना चाहिए, डांस करना चाहिए, चित्रकला करनी चाहिए, क्लब में जाना चाहिए, दोस्तों व परिजनों के साथ पढ़ाई करनी चाहिए। इससे लर्निंग पावर मजबूत होती रहेगी।


सिर्फ एक मसाला नहीं है हल्दी



हल्दी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है। यह न केवल एक मसाला है बल्कि इसमें कई औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में होते है। हल्दी का इस्तेमाल खाने के अलावा कई बीमारियों को दूर करने में भी किया जाता हैं। रोज हल्दी का सेवन करने से हमारे शरीर को कई सेहत लाभ मिलते हैं। रोजाना हल्दी खाने से आपकी याद्दाश्त अच्छी हो सकती है। आपका मूड तरोताजा हो सकता है।

 

 इसलिए अल्जाइमर से लड़ते हैं हल्दी के औषधीय गुण



हल्दी में पाए जाने वाले 'करक्यूमिन' में ऑक्सीकरण-रोधी गुण होते हैं। इसे एक संभावित कारण बताया गया है कि भारत में, जहां करक्यूमिन आहार में शामिल होता है, बूढ़े-बुजुर्ग अल्जाइमर की चपेट में कम आते हैं। उनकी याददाश्त भी तुलनात्मक रूप से अच्छी होती है। लॉस ऐंजिलिस की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोध के मुताबिक करक्यूमिन अपना असर कैसे दिखाता है, यह ठीक-ठीक पता नहीं है, लेकिन दिमागी उत्तेजना को कम करने की इसकी काबिलियत के कारण ऐसा हो सकता है, जिसे अल्जाइमर रोग और गहरे अवसाद से जोड़ा गया है।

 

खून साफ करता है हल्दी का जूस



शरीर के विषैले तत्वों को निकालने और रक्त शुद्धि के लिए हल्दी का जूए सबसे अच्छा विकल्प है। इसे बनाने के लिए कच्ची हल्दी का टुकड़ा या पाउडर, नींबू और नमक चाहिए। पहले आधा नींबू निचोड़ लें फिर इसमें हल्दी और नमक मिक्स करके मिक्सर या ब्लेंडर में ब्लेंड कर लें। अब इस मिश्रण में आवश्यकता के अनुसार पानी मिलाइये और इसका सेवन कीजिए।

 

दिमाग की बीमारियां होंगी दूर



हल्दी दिमाग में एक ऐसे प्रोटीन को बनने से रोकती है जो याददाश्त को नुकसान पहुंचाता है।

 

मजबूत होता है रक्त संचार



केजीएमयू के फिजियोलॉजी विभाग के डॉक्टर नरसिंह वर्मा ने बताया कि हल्दी को ब्लड प्यूरिफायर माना जाता है। यह शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को मजबूत बनाता है। हल्दी में पाए जाने वाले करक्यूमिन से अल्जाइमर का खतरा कम करता है। रोजाना हल्दी खाने से याद्दाश्त अच्छी हो सकती है।

 


डायबीटीज का घटता है खतरा



हल्दी का सेवन करने से डायबीटीज का खतरा कम हो जाता है। हल्दी शरीर से मोटे ऊतकों को हटाती है, जिससे वजन नहीं बढ़ता है।

 


जोड़ों का दर्द होता है दूर



अगर जोड़ों में दर्द होता है तो हल्दी का सेवन करने से आराम मिलता है। इसके सेवन से जोड़ों की अकड़न और सूजन कम होती है।


नहीं है इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज
दवाइयों व व्यायाम से मरीज की भूलने की शक्ति को कम किया जा सकता है। लेकिन अल्जाइमर बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं है। जब तक मरीज जिंदा रहता है तब तक उन्हें दवाइयां व व्यायाम करना पड़ता है। इससे मरीज करीब 20 से 25 साल आसानी से जी सकता है। लखनऊ के केजीएयमू के जीरियाटिक ऐंड मेटल हेल्थ विभाग के हेड डॉ श्रीकांत श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में तीन दवाएं ही हैं जो अल्जाइमर के मरीजों को दी जाती हैं। इसमें डोनैप्सिल, रीवास्टिग्माइ और गैलेंटामाइन शामिल है। लेकिन ये तीनों ही बीमारी के असर को धीमा कर देती हैं। उन्होंने बताया कि एक दवा पर काम हो रहा है जो अल्जाइमर को ठीक कर सकती है। तीन फेज में इसका ट्रायल होना है। पहले फेज में एनिमल और दूसरे फेज में स्वस्थ मरीजों पर उसका असर चेक किया गया। दोनों में यह सफल रहा। मरीजों पर ट्रायल सफल होने पर जल्द ही अल्जाइमर को ठीक करने वाली दवा मरीजों तक पहुंचा सकेंगे।


युवाओं में भी हो रही बीमारी
केजीएमयू के न्यूरॉलजी के हेड डॉ आर के गर्ग ने बताया कि अल्जाइमर अमूमन वृद्धों को होती है, लेकिन अब युवाओं में भी इस बीमारी को देखा गया है। इसके भी मरीज ओपीडी में आ रहे हैं हालांकि उनकी संख्या अभी कम है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारे देश में इस बीमारी के निराकरण पर अलग से कोई खर्च नहीं होता। इसके विपरीत अमेरिका दो बिलियन डॉलर सिर्फ इस बीमारी पर खर्च करता है। इसके अलावा इसकी एक वैक्सीन पर भी काम चल रहा है। वह सफल होती है तो बहुत हद तक लोगों को इस वैक्सीन के माध्यम से अल्जाइमर से बचाया जा सकेगा।


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