अभिव्यक्ति पर चाबुक
उत्तर प्रदेश की नोएडा पुलिस ने नेशन लाइव के औनलाइन टीवी स्टेशन को बंद कर दिया है क्योंकि उस ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक रिपोर्ट प्रसारित की थी. सिटी मजिस्ट्रेट की राय में एक महिला रिपोर्टर द्वारा मुख्यमंत्री पर अभद्र टिप्पणी की गई थी, उस से पूरे उत्तर प्रदेश में कानून व व्यवस्था के लिए खतरा पैदा हो गया था. यह एक आपराधिक साजिश थी कि राज्य की सामाजिक शांति भंग हो.
जिलाधीश बी एन सिंह के अनुसार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपनेआप में सीमित है क्योंकि असीमित होने पर उस से विकट स्थिति पैदा हो सकती है और पूरे राज्य की शांति को खतरा हो सकता है.
जो शब्द सिटी मजिस्ट्रेट और जिलाधीश ने इस्तेमाल किए हैं वे असल में कानूनी बचाव के लिए हैं और पहली नजर में ब्रौडकास्टरों को बंद करने और नेशन लाइव को सील करने के लिए फिट हैं. पुलिस अधिकारी जानते भी हैं कि उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय इस गिरफ्तारी और सीलबंदी को अवैध ठहरा देंगे, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि तब तक इस चैनल की आर्थिक कमर टूट जाएगी और संचालकों को सबक मिल ही जाएगा कि अब स्वतंत्रताएं एकतरफा हैं. बस, सत्ता की बोली बोलो.
जिस तरह की भाषा पिछले 5-7 सालों में गैरभाजपाई दलों के नेताओं के बारे में फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और यहां तक कि औनलाइन चैनलों द्वारा इस्तेमाल की गई है, और उस पर जो चुप्पी छाई हुई है, उस की बात ही न करें. भाजपाई सरकार के इस कदम ने साफ कर दिया है कि देश में अब एक ही भाषा का इस्तेमाल करने का रास्ता बनाया जा रहा है, सत्तारूढ़ लोगों की प्रशंसा वाली भाषा का. सरकार का विरोध और सरकारी नीतियों की पोल खोलने वालों को अदालतों और कैदखानों में घसीट कर उन्हें बरबाद करने का प्लान तैयार है.
आम व्यक्ति हो सकता है सोचे कि इस से उस का क्या जाता है, यह तो राजनीति का खेल है. पर असलियत यह है कि धीरेधीरे आम आदमी भी हर तरह की स्वतंत्रता खो रहा है. यह स्वतंत्रता काम करने की है, अपना पैसा रखने की है, अपने मनचाहे साथी के साथ प्रेम व विवाह करने की है, मनचाही जगह घूमने जाने या काम करने जाने की है. इन सब स्वतंत्रताओं पर बंदिशें लगाने की सरकारी प्रक्रिया जारी है.
लेबल: संपादकीय
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